लंका विजय के बाद भगवान श्री राम ने विभीषण का लंका सम्राट के रूप में राज्याभिषेक किया और वापिस अयोध्या की ओर प्रस्थान किया. तब विभीषण ने श्री राम से प्रार्थना की कि जब वे सीता, लक्ष्मण और अपनी सम्पूर्ण सेना सहित भारत की धरती पर पहुँच जाएँ तब अपना बनाया हुआ पुल तोड़ दें ताकि भविष्य में लंका को पुनः आक्रमण का सामना ना करना पड़े. भगवान ने ऐसा ही किया. भारत की धरती पर पहुँच कर उन्होंने समुद्र के किनारे रेत में अपने धनुष से निशान लगाया और उसी जगह से पुल तोड़ दिया गया. यह स्थान धनुष्कोडी के नाम से जाना जाने लगा. धनुष्कोडी का अर्थ ही ‘धनुष का सिरा‘ होता है.
धनुष्कोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के एक द्वीप पैमबन के दक्षिण पूर्वी छोर पर है. पैमबन द्वीप रामेश्वरम के समीप से शुरू होता है और एक 30 किलोमीटर लम्बी पतली पट्टी की शक्ल में लंका की दिशा में फैला हुआ है. लंका का किनारा भी यहाँ से केवल 30 किलोमीटर की दूरी पर है. धनुष्कोडी और लंका के बीच काफी उथला समुद्र है जिसमें थोड़ी थोड़ी दूरी पर एक लाइन से छोटे छोटे टापू हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी ने करीने उन्हें वहां लगा दिया हो. माना जाता है कि यह भगवान् राम द्वारा बनाये पुल के अवशेष हैं. इन्हें ही राम सेतु कहा जाता है.
कालांतर में धनुष्कोडी एक समृद्ध मछुआरा गांव बन गया. धीरे धीरे आधुनिक सुविधाएँ भी उपलब्ध होने लगीं. हिन्दुओं के लिए तो पवित्र स्थल था ही, ईसाईयों के लिए एक चर्च भी बन गया. डाकखाना, स्कूल, रेलवे स्टेशन आदि भी बन गए. श्री लंका के इतना पास होने के कारण समुद्र के रास्ते पर्यटकों का आना जाना होने लगा. फलस्वरूप होटल आदि की सुविधा भी हो गयी. एक अच्छा खासा फलता फूलता छोटा शहर बन गया धनुष्कोडी.
लेकिन 1964 में अचानक पल भर में सब समाप्त हो गया. 22-23 दिसंबर को 270 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से समुद्री तूफ़ान आया और साथ लाया 25 फुट ऊंची लहरें. किसी को मौका ही नहीं मिला बचने और बचाने का. सब कुछ नष्ट हो गया. कुछ भी नहीं बचा. यहाँ तक कि एगमोर, मद्रास से आ रही रेलगाड़ी, जिसमें 150 से अधिक यात्री सवार थे, भी तूफ़ान का शिकार हो गयी. गाड़ी में सवार किसी भी व्यक्ति का कुछ पता नहीं चला. रेल की पटरी भी नहीं बची. इमारतों के बचे रहने का तो प्रश्न ही नहीं था. रह गए केवल खंडहर. कुल मिला कर लगभग 1800 लोग अपनी जान गवां बैठे.
1965 में सरकार ने फैसला लिया कि धनुष्कोडी अब रहने लायक नहीं रहा, ना ही इसे दोबारा बसाया जा सकता है. एक फलता फूलता शहर भूतिया शहर बन गया. कुछ मुट्ठी भर लोग अभी भी रहते हैं वहां जिनकी जीविका का एकमात्र साधन मछली पकड़ना है. कुछ श्रद्धालु रामेश्वरम के बाद यहाँ भी आ जाते हैं. किन्तु उनकी संख्या काफी कम है. अधिकतर लोगों को पता ही नहीं है धनुष्कोडी के बारे में. यूँ भी धनुष्कोडी जाना आसान नहीं रहा. इसलिए पर्यटक भी कम ही जाते हैं. रेलगाड़ी अब जाती नहीं है. समुद्र के किनारे किनारे पैदल जा सकते हैं या जीप किराये पर लेकर.
कुछ ही दिन पहले प्रधान मंत्री ने धनुष्कोडी जाने के लिए एक बस सर्विस का उद्घाटन किया है. आशा है अब अधिक पर्यटक जाना शुरू करेंगे धनुष्कोडी.
सच में जरा सी देर में बसे बसाये शहर कसबे सब तहस नहस हो जाते हैं पता भी नहीं चलता
LikeLike
यही प्रारब्ध है जिसके आगे सब असमर्थ हैं.
LikeLike
पढेने मात्र से धनुषकोडी भ्रमण की तीव्र इच्छा पैदा हो गई। बहुत यक्ष सुन्दर चित्रण है। देख ने की तीव्र इच्छा पैदा हो गई। वैसे देखने जैसा ही मजा आ गया।
LikeLike
देखने का अनुभव अलग ही है. पढ़ने में वो बात कहाँ.
LikeLike